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संपादकीय
कब तक बेबस रहेंगी विश्व की 5 आंखें?
By Deshwani | Publish Date: 2/5/2020 1:51:52 AM
कब तक बेबस रहेंगी विश्व की 5 आंखें?

सुमित शशांक (सिविल सेवा प्रशिक्षक, युवा नेता) ज्ञात हो कि 5 eyes विश्व भर में हो रही संवेदनशील गतिविधियों पर नजर रखने वाले इंटेलिजेंस शेयरिंग ग्रुप है। जिसके अंतर्गत यूएस, यूके, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा जैसे विकसित राष्ट्र आपसी सहयोग के साथ विश्व में होने वाले यूरेनियम संवर्धन, बायो लॉजिकल हथियारों संबंधी तथा गैरकानूनी कार्यो पर नजर रखती है। 


आज जब चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर से निकले कोरोना वायरस पूरी मानवता को खतरे में डाल दिया है, वहीं दूसरी तरफ विश्व की कई आर्थिक महाशक्तियों की अर्थव्यवस्था को वृहद पैमाने पर नुकसान पहुंचाने का कार्य किया है।  तेजी से बदलते वैश्विक एवं आर्थिक संबंधों के बीच ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरी दुनिया आग अघोषित बायो लॉजिकल युद्ध लड़ रही है। ऐसी अवधारणाएं तब और ज्यादा मजबूत हो जाती हैं जब विगत कई दिनों से विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका द्वारा लगातार चीन पर यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि चीन से फैलें कोरोना वायरस के मानव निर्मित होने की संभावनाएं प्रबल हैं। 


आज जब पूरे विश्व में यह मांग तेजी से उठ रही है कि चीन को अपने बुहान शहर में इंटरनेशनल जांच टीम को जाने देना चाहिए। जिसके बाद चीन द्वारा पूर्व में अमेरिकी जांच टीम को मना करना तथा उसके पश्चात, ऑस्ट्रेलिया द्वारा जांच टीम भेजे जाने की बात पर आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने की धमकी देना, उन पूर्वाग्रहों को और भी ज्यादा मान्यता प्रदान करती है। जिसमें यह माना जा रहा है कि यह कोरोनावायरस जानबूझकर चीन के द्वारा सुनियोजित तरीके से फैलाया गया है। यह जानना काफी दिलचस्प है कि चाइना में स्थित वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के लिए फंड प्रदान करना तथा विशेष प्रकार के सुरक्षा उपकरणों की स्थापना का प्रमुख कार्य फ्रांस तथा अमेरिका के द्वारा ही किया गया है।  बदलते वैश्विक परिवेश में जहां अन्य राष्ट्रों ने चुप्पी साध रखी है, ऑस्ट्रेलिया द्वारा विभिन्न मंचों पर इस विषय पर सवाल उठाए जा रहे हैं।


70 अरब डॉलर के निर्यात के बावजूद भी ऑस्ट्रेलिया ने इस विषय पर चीन की धमकियों के जवाब स्वरूप उसे अवगत करा दिया है कि वह उसे अफ्रीकी गरीब राष्ट्र समझकर हल्के में लेने की कोशिश ना करें। तथा अपने युद्ध पोतों को दक्षिण चीन सागर में और मुस्तैदी के साथ निगरानी करने के आदेश भी दिए हैं। अब महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि ऑस्ट्रेलिया तथा अमेरिका द्वारा आवाज उठाने के बावजूद भी कहीं ना कहीं पूरा विश्व अपनी जरूरतों के लिए चीनी सामानों पर निर्भर है। जिसके कारण उनके आर्थिक मूल्य मानवीय मूल्यों पर भारी पड़ रहे हैं। अब महत्वपूर्ण विषय यह है कि भारत को नए सामरिक तथा आर्थिक समझौतों के साथ चीनी सामानों पर अपनी निर्भरता को कम करनी होगी। 


हाल ही में इस विषय पर भारत सरकार द्वारा एफडीआई के बदलाव संबंधी नियम भारतीय कंपनियों के हितों के लिए उठाया गया। एक महत्वपूर्ण तथा सराहनीय कदम जहां एक तरफ भारत में आने वाले चीनी सामग्रियों में गुणवत्ता की कमी होती है तथा इससे कई प्रकार की बीमारियों के फैलने का खतरा भी होता है, ऐसे विषयों को ध्यान में रखते हुए चीनी सामग्री को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। 


इसके विपरीत आस्ट्रेलिया तथा अन्य यूरोपीय राष्ट्रों से आने वाली सामग्रियों की गुणवत्ता मानक चीनी सामानों की अपेक्षा ज्यादा बेहतर है। आज यह बातें स्पष्ट हो चुकी हैं कि विगत कई वर्षों से चीन सिल्क रूट के माध्यम से पूरे विश्व के आर्थिक बाजारों पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा है। वहीं चीनी कर्ज के जाल में फंसते जा रहे यूरोपीय तथा ग्रुप ऑफ फाइव आईज के राष्ट्र कहीं ना कहीं बेबस नजर आ रहे हैं। बड़े तूफान के आने के पूर्व की शांति कब विश्वयुद्ध में बदल जाए यह कहना अतिशयोक्ति होगी।


 

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