दरभंगा। देवेन्द्र कुमार ठाकुर।
भारतीय इतिहास और विशेषकर राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास इस बात की गवाही देता है कि राष्ट्रीय आंदोलन में मौलाना अबुल कलाम आजाद की भूमिका प्रेरणा स्रोत की थी। मौलाना आजाद भारतीय सभ्यता और संस्कृति के पोषक थे। यही कारण है कि वह शुरू से अंत तक आजादी की लड़ाई में इस बात की वकालत करते रहे कि भारत की गंगा जमुनी तहजीब सुरक्षित रहे। राष्ट्रीय एकता प्रबल होती रहे। उक्त बातें रविवार को अपने अध्यक्षीय भाषण में सीएम कॉलेज के प्राधानाचार्य डॉक्टर मुश्ताक अहमद ने कही।
डॉ अहमद कालेज में शिक्षा दिवस के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार राष्ट्रीय आंदोलन में मौलाना आजाद की भूमिका विषय पर संबोधित करते हुए उन्होंने कहा आज का सेमिनार इस मायने में सार्थक है कि विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ यहां अपना आलेख पढ़ेंगे और वक्तव्य भी देंगे। जिससे नई पीढ़ी लाभान्वित होगी। मौलाना आजाद उर्दू ,फारसी व अरबी के विद्वान थे लेकिन उनकी निगाह भारतीय संस्कृति सभ्यता और खान-पान पर गहरी थी। यही वजह है कि उनकी लेखनी में पूरा भारत सांस लेता नजर आता है।
उर्दू के जाने-माने शायर और साहित्यकार डॉ जमा वरदाहवी ने कहा कि मौलाना आजाद ने भारतीय संविधान लेखन में भी अपनी महती भूमिका निभाई थी और शिक्षा के क्षेत्र में एक नई रौशनी फैलायी थी। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रेम मोहन मिश्रा ने संबोधित करते हुए कहा कि आज जब भारत में सांप्रदायिकता बढ़ रही है ऐसे समय में मौलाना आजाद के उपदेश हमारे लिए रहनुमा साबित हो सकते हैं। कार्यक्रम में एमएलएसएम के प्राचार्य प्रो विद्यनाथ झा, प्रो विष्वनाथ, प्रो फारान शिकोह यजदानी, प्रो टुनटुन झा, डॉ ज़िया हैदर, डॉ अमित कुमार झा, डॉ संजय कुमार सहनी, डॉ एहसान आलम, डॉ मोहम्मद बदरुद्दीन, अधिवक्ता सफी उर रहमान, एस एम हसन इकबाल, रेहान कादरी आदि शामिल है।