नई दिल्ली, (हि.स.)। फिक्की की पहल ‘अर्थव्यवस्था को नष्ट कर रही तस्करी और नकली माल उत्पादन जैसी गतिविधियों के खिलाफ कमिटी’ (FICCI CASCADE) द्वारा अवैध व्यापारः आतंकवाद और संगठित अपराध के वित्त पोषण को बढ़ावा (इलिसिट ट्रेडः फ्यूलिंग टेरर फाइनेंसिंग ऐंड आर्गनाइज्ड क्राइम) शीर्षक की एक फिक्की-केपीएमजी रिपोर्ट तैयार की गई है। इस रिपोर्ट को आज फिक्की के सम्मेलन में जारी किया गया। इस रिपोर्ट से आतंकवाद को वित्त पोषण, संगठित अपराध और अवैध व्यापार के बीच के गठजोड़ को समझने में मदद मिलती है।
फिक्की के महासचिव डॉ. संजय बारू ने कहा, “तस्करी, नकली माल उत्पादन और पाइरेसी वाली वस्तुओं के अवैध व्यापार ने अर्थव्यवस्था को कई तरीके से प्रभावित किया है। इसने वैध उद्योग को अस्थिर किया है, इनोवेशन एवं निवेश पर अंकुश लगाया है, सरकारी राजस्व को घटाया है और उपभोक्ताओं की सेहत एवं सुरक्षा को भी नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर देखें तो यह पारदेशीय अपराध, भ्रष्टाचार और आतंकवाद को हवा दे रहा है। यह अन्य आपराधिक गतिविधियों के साथ मिश्रित हो जाता है| इसलिए यह कानून के शासन और वैध बाजार अर्थव्यवस्था को भी खोखला कर रहा है, जिससे दुनियाभर में ज्यादा असुरक्षा और अस्थिरता पैदा हो रही है।”
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) और यूरोपीय संघ बौद्धिक संपदा कार्यालय (EUIPO) द्वारा अप्रैल 2016 में प्रकाशित रिपोर्ट ‘नकली और पाइरेटेड वस्तुओं का व्यापार : आर्थिक असर का आकलन’ में यह अनुमान लगाया गया कि साल 2013 में दुनियाभर में नकली माल और पाइरेसी की कुल आर्थिक और सामाजिक कीमत 737 से 898 अरब डॉलर तक थी और इसके साल 2022 तक बढ़कर 1.54 से 1.87 लाख करोड़ (ट्रिलियन) डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है, जो करीब 108 फीसदी की बढ़त को दर्शाता है। इसके अलावा, नकल और पाइरेसी की वजह से साल 2013 में दुनिया में कुल 20 से 26 लाख तक नौकरियां खत्म हो गईं थीं और इसके साल 2022 तक बढ़कर 42 से 54 लाख तक पहुंच जाने की आशंका है, जो कि करीब 110 फीसदी की बढ़त को दर्शाता है।
भारत में तस्करी कई तरीके की होती है-किसी सामान के बारे में घोषित न करना, उसकी कीमत कम बताना, अंतिम उपयोग का गलत इस्तेमाल या अन्य तरीके से। साल 2016 में घोषित न होने वाले करीब 1,187 करोड़ रुपये के सामान और कीमत कम बताए जा रहे 254 करोड़ रुपए के सामान जब्त किए गए। अंतिम इस्तेमाल के दुरुपयोग होने वाले करीब 2,780 करोड़ रुपए के सामान जब्त किए गए| यह साल 2015 में 953 करोड़ रुपए ही था| इस प्रकार इसमें 190 फीसदी की बढ़त देखी गई। सबसे ज्यादा नकली माल उत्पादन और तस्करी होने वाली वस्तुओं में तंबाकू, सिगरेट, इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुएं, सोना, मशीनरी एवं पाट्र्स, अल्कोहल वाले पेय, आटो उपकरण, उपभोक्ता वस्तुएं (एफएमसीजी) और मोबाइल फोन आदि शामिल हैं।
साल 2012-2016 के लिए यूएन कॉमट्रेड डाटा पर केपीएमजी द्वारा भारत के विश्लेषण से पता चलता है कि उक्त वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं की औसत तस्करी करीब 3,429.69 करोड़ रुपए की हुई। इसी प्रकार उक्त वर्षों में सोने की औसत तस्करी करीब 3,119.56 करोड़ रुपए की और मशीनरी एवं पाट्र्स की औसत तस्करी करीब 5,913 करोड़ रुपए की थी। साल 2010 से 2015 के बीच सिगरेट बाजार में अवैध व्यापार की पैठ 15 से बढ़कर 21 फीसदी तक हो गई। यही नहीं, पिछले वर्षों में भारत में धूम्रपान करने वालों की संख्या में बढ़त हुई है, लेकिन सिगरेट की बिक्री में कमी आई है, इसे देखते हुए लगता है कि इस उद्योग में अवैध व्यापार की पैठ बढ़ी है। इस उद्योग में अवैध व्यापार के बढ़ने के पीछे कई कारक हैं। टैक्स की ऊंची दरें, सस्ते विकल्प की उपलब्धता, जागरूकता की कमी और प्रवर्तन तंत्र की कमी होना ऐसे प्रमुख कारक हैं, जिनकी वजह से उपभोक्ता नकली, तस्करी या पाइरेसी वाली वस्तुओं को चुनने के लिए प्रेरित होते हैं, यह आभास किए बिना कि ऐसे अवैध व्यापार को बढ़ावा देने का नतीजा क्या हो सकता है।
अवैध व्यापार पर अंकुश के लिए कई सुझाव दिए गए। जिसमें सरकारी प्रयासों के द्वारा नकली और तस्करी वाले उत्पादों के बारे में बेहतर जागरूकता पैदा किया जाए। नकली और पाइरेटेड वस्तुओं के बाजार को घटाने के लिए सरकार और उद्योग जगत मिलकर अभियान चला सकते हैं। अवैध व्यापार तथा आतंकवाद, संगठित अपराध और अवैध व्यापार के बीच रिश्तों पर अंकुश लगाने के लिए कार्य बलों (टास्क फोर्स) का गठन किया जा सकता है। सरकार को करारोपण के द्वारा अपनी राजस्व संबंधी जरूरतों और वस्तुओं पर कर बढ़ाने से अवैध व्यापार को जो प्रोत्साहन मिलता है, उसके बीच एक संतुलन कायम करना चाहिए।