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बिहार
"जल-जीवन-हरियाली" को आइना दिखाती बेतिया की ऐतिहासिक चंद्रावत नदी
By Deshwani | Publish Date: 12/12/2019 2:14:12 PM

बेतिया अवधेश कुमार शर्मा। पश्चिम चम्पारण जिला मुख्यालय बेतिया की ऐतिहासिक जीवनदायिनी रही चंद्रावत नदी को भू माफिया व दबंगों से मुक्त कराने में जिला प्रशासन नाकाम रहा है। नदी को अतिक्रमित कर दोनों तरफ भव्य आलीशान मकान बन जाने से खीरियाघाट पुल की ओर आवागमन में ट्रैफिक की  समस्या उत्पन्न होती है। आवागमन की इस समस्या से निजात पाने के लिए कोतवाली चौक निवासी गजेन्द्र गुप्ता ने नदी पर निजी पुल विगत तीन वर्ष पूर्व बना लिया। बिहार सरकार की जल जलाशय संरक्षण को धत्ता बताकर निजी उपयोग करना सरेआम जिला के अधिकारियों के नाक के नीचे करना, निःसन्देह प्रशासन को खुला चुनौती देने के समान है। दिन प्रतिदिन चंद्रावत नदी का अतिक्रमण कर अवैध निर्माण कार्य नगर परिषद व जिला प्रशासन की संलिप्तता प्रदर्शित करने को पर्याप्त है। आश्चर्य है कि चार-चार (पायों) पीलर की पुल के निर्माण में जेसीबी व कुशल कारीगरों की पूरी टीम ने अपनी कार्य योजना को असली जामा पहनाया, अलबत्ता प्रशासन की नजर में उपर्युक्त कारगुज़ारी नही आ सका। चंद्रावत नदी पर निजी पुल बनने की भनक तक किसी को कानों कान नहीं मिली। इस संबंध में जैसा हमारे सूत्र बताते हैं कि सभी कार्यालय और निजी दरवाज़ों तक, सभी भू माफियाओं के कथित फाइनेन्सर कहे जाने वाले अवैध पुल निर्माता ने मिठाई व उपहार के डिब्बों की होम डिलिवरी पहले ही करा दी गई। जिसके परिणाम स्वरूप नदी जेसीबी से खुदती रही व पीलर्स(पाये) निकलते रहे । इसकी भनक डिब्बा बन्द पैकेट तक रह गई। ऐतिहासिक धरोहर चंद्रावत नदी के संरक्षक अधिकारी ही जब स्वयं इस अवैध पुल निर्माण को नहीं देख पाए, तो कुछ नदी प्रेमियों ने सोशल मीडिया और आवेदन के माध्यम  पुल के संबंध में जिला प्रशासन का ध्यानाकर्षित किया।

 
 
उल्लेखनीय है कि "जल-जीवन-हरियाली" योजना के तहत पुराने तालाब, कुआँ, जलाशयों को संरक्षित करने की बात है, तो क्या ऐतिहासिक महत्व की विलुप्त होती चंद्रावत नदी का संरक्षण नही किया जा सकता है? जिला प्रशासन के मुखिया डॉ नीलेश रामचंद्र देवरे को स्वयं संज्ञान लेकर "जल-जीवन-हरियाली" योजना अन्तर्गत चंद्रावत नदी का उद्धार करना चाहिए, अलबत्ता जिला प्रशासन को सम्भवतः हिम्मत नहीं हुई की पुल के संबंध में एक बार अनुमति पत्र अथवा इसके जवाबदेह अधिकारियों को तलब कर सके। चंद्रावत नदी पर बना अवैध निजी पुल से सिर्फ व सिर्फ एक व्यक्ति का फायदा हो पर उपहास के पात्र तो चंद्रावत नदी, जिला प्रशासन और बिहार सरकार सभी बने हुए हैं। अतिक्रमण में गरीबों के घर और दुकान को हटाने में तत्पर जिला प्रशासन उनकी रोजी रोटी और आशियाना उजाड़ने में हिचक नहीं दिखाता और वाहवाही के साथ विकास की दर्पण दिखाता है। विपरीत इसके सम्पन्न व सामर्थ्यवान अतिक्रमण-कारियों के विरूद्ध कार्रवाई करने में साँप सूँघ जाता है। ठीक वैसे ही जल जलाशय को संरक्षित कर विकास पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सरकारी राशि पानी की तरह बहाने वाले अधिकारियों के आँखों का पानी सामर्थ्यवान लोंगो की कारगुज़ारी के सामने सूख सा जाता है। 
 
 
बिहार सरकार निर्देश देती है कि पर्यावरण, जल जलाशय संरक्षण किया जाए, अलबत्ता सरकार के निर्देश का अनुपालन सिर्फ़ गरीबों को हटा कर किया जाना चाहिए या फिर दबंगों, भू माफिया और आर्थिक अपराध करने वालों के विरुद्ध भी जिला प्रशासन को करना चाहिए। बहरहाल चंद्रावत नदी पर बने अवैध निजी पुल पर जब नजर जाती है सबंधित अधिकारियों की नाकामी और विफलता नजर आती है। जिला प्रशासन की उदासीनता चंद्रावत नदी को बर्बादी के गर्त में धकेल रही है और पीठ थपथपाने वाले अधिकारियों के मुँह पर अवैध पुल एक काला धब्बा व करारा तमाचा के माफिक है। चंद्रावत नदी के परिप्रेक्ष्य में बेतिया के जन सामान्य का कहना है कि "तुलसीदास" की पंक्तियाँ "समरथ को नहीं दोष गोसाईं" फिलवक्त चरितार्थ हैं।
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