रक्सौल। अनिल कुमार।
एईएस/जेई दिमागी बुखार से बचाव के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र रक्सौल यूनिसेफ कार्यालय के सभागार में उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में बच्चों को खाली पेट व धूप से दूर रखने को बताया गया है।
वहीं इसके लक्षण पता चलते ही चिकित्सक के पास ले जाने का परामर्श दिया गया। प्राथमिक उपचार में बच्चों को ढंडा व ताजा पानी से पोछते रहने व ओआरएस घोल देते रहने को बताया गया है। बच्चों को हवादार जगह पर रखने की सलाह व कम्बल मेंं लपेटना से मना किया गया है।
कार्यशाला की अध्यक्षता प्रखंड विकास पदाधिकारी कुमार प्रशांत एवं चिकित्सा पदाधिकारी डॉ शरत चंद्र शर्मा ने की। इस कार्यशाला में ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र के विकास मित्रों को इस बीमारी से होने वाले लक्षणों व बचाव के बारे में जानकारी दी गई। इस कार्यशाला में एईएस/जेई बीमारी कब होती है, किसको होती है, इस बीमारी की पहचान तथा क्या कारण है। पहचान होने पर क्या नहींकरना है। इस बीमारी की रोकथाम में आशा, आंगनबाड़ी, सेविका, एएनएम विकास मित्र, जीविका कर्मी तथा स्वास्थ्य कर्मी की भूमिका, इस बीमारी से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतें आदि पर विस्तृत जानकारी दी गई।
0 से 15 वर्ष तक के कुपोषित बच्चों अाते हैं चपेट में-
कार्यशाला में बताया गया कि यह बीमारी अप्रैल माह से जुलाई माह तक पाया जाता है। जो 0 से 15 वर्ष तक के कुपोषित बच्चो को होता है। जो बच्चे इन दिनों में बिना खाये-पिये धूप में खेलते रहते है। जो रात में भर पेट भोजन के बिना ही सो जाते है। मस्तिक ज्वर के बच्चों की पहचान होने पर तेज बुखार होने पर, शरीर को ताजे पानी से पोछते रहे। बुखार का शिरप या पैरासिटामोल की गोली दें। बच्चा बेहोश न हो तो ओआरएस का ताजा घोल पिलाएं। बच्चो को हवादार जगह पर रखे। बीमार बच्चों को कंबल व गर्म कपड़ों में न लपेटें। एम्बुलेन्स सेवा की 102 नम्बर डायल कर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाए। ताकि बच्चों की जल्द इलाज हो सके व बच्चा स्वस्थ्य हो जाए। इसके लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में वातानुकूलित एईएस वार्ड है।