नई दिल्ली/पटना। बिहार के 3.7 लाख नियोजित शिक्षकों के वेतन मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। जस्टिस एएम सप्रे और जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। पिछली सुनवाई में करीब 93 हजार शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास नियोजित शिक्षकों की ओर से वरिष्ठ वकील विभा दत्त मखीजा ने पक्ष रखा था।
मखीजा ने कहा था कि क्वालिटी एजुकेशन तभी दिया जा सकता है जब हमारे पास क्वालिटी टीचर हों। उन्होंने कोर्ट से कहा, 'नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) के हिसाब से आज की तारीख में शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता के साथ-साथ टीईटी पास होना अनिवार्य है और यह बहुत ही कठिन परीक्षा है।'
मालूम हो कि मामले में छह सितंबर को हुई आखिरी सुनवाई के बाद मंगलवार 11 सितम्बर को होने वाली अगली सुनवाई को कोर्ट नंबर 11 के केस लिस्ट में शामिल ही नहीं किया गया था। साथ ही सुनवाई कर रहे दोनों जजों को भी अलग-अलग बेंचों में दूसरे जजों के साथ बिठा दिया गया था।
इसके बाद बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के वकीलों ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए मेंशन किया था। आज होने वाली यह सुनवाई संभवतः आखिरी होगी, और फिर सुप्रीम कोर्ट की बेंच मामले में अपना फैसला सुनाएगी।
केंद्र और राज्य सरकार की ओर से लगातार कोर्ट में दलील दी जा रही है कि नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने की आर्थिक क्षमता नहीं है। वैसे बिहार सरकार ने इन शिक्षकों के वेतन में 20 प्रतिशत तक वृद्धि का प्रस्ताव दिया है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि एक ही स्कूल में पढ़ाने वाले एक शिक्षक को 70 हजार और एक को 26 हजार क्यों दिया जा रहा है? कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि शिक्षकों को 26 हजार और वहां के चपरासी को 36 हजार वेतन मिल रहा है।