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कोरोना महामारी के विश्लेषण में डेटा एनालिटिक्स की भूमिका अहम: ईं. सौरभ
By Deshwani | Publish Date: 3/4/2021 10:47:01 PM
कोरोना महामारी के विश्लेषण में डेटा एनालिटिक्स की भूमिका अहम: ईं. सौरभ

रक्सौल। अनिल कुमार। कोरोना महामारी के विश्लेषण में डेटा एनालिटिक्स (बिग डेटा) के महत्व के बारे में रक्सौल निवासी ईं. सौरभ ने एक एनालिसिस रिपोर्ट तैयार की है जो डीक्यू चैनल्स मैगज़ीन के फरवरी अंक में 'बिग डेटा एंड कोरोना' शीर्षक के साथ प्रकाशित हुई है। डेटाक्वेस्ट की यह मैगज़ीन आईटी जगत की एक जानी मानी मैगज़ीन है। प्रकाशित होने के साथ ही यह आर्टिकल चर्चा का विषय बन गया है।इस विषय में जानकारी देते हुए ईं. सौरभ ने बताया कि कोरोना महामारी ने तकनीकी दुनिया में अत्यधिक डेटा जेनेरेट किया जिसको डेटा एनालिटिक्स की मदद से इनफार्मेशन में तब्दील किया गया है। इसका उपयोग भविष्य में कोरोना और उसके समान अन्य संक्रामक महामारी के पैटर्न, मूवमेंट और हॉटस्पॉट को समझने में मददगार साबित होगा। ईं. सौरभ आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर के गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं। फिलहाल वे डेटा एनालिटिक्स पर भुवनेश्वर स्थित इंफोसिस में बतौर सीनियर सॉफ्टवेयर डेवलपर काम कर रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि डेटा एनालिटिक्स के जरिये कोविड-19 वायरस के फैलाव और कंट्रोल को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। 





संक्रमित व्यक्ति के ट्रेवल हिस्ट्री के डेटा से नए कोविड हॉटस्पॉट्स का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है जिसके जरिये इससे बचाव की पूर्व तैयारी करने में मदद मिल सकती है। जैसे नए कोविड हॉस्पिटल्स या बेड का इंतजाम, लॉकडाउन की आवश्यकता, कोरेन्टीन सेंटर का निर्माण, फ्रंट लाइनर्स को पूर्व से तैयार करना, पीपीई किट और मास्क की उपलब्धता, वैक्सीनेशन आदि। सारे डैशबोर्ड, ग्राफ्स, पैटर्न्स या एनालिसिस चाहे वो डब्लूएचओ, सीडीसी या किसी खास देश के हों, डेटा एनालीटिक्स की मदद से ही बनाये जाते हैं। कोरोना से लड़ने और इसके अल्पकालिक और दीर्घकालिक संक्रमण का पूर्वानुमान लगाने के लिए इस मॉडल पर लगातार काम किया जाना जरूरी है।ईं. सौरभ ने आगे बताया कि आईटी इंडस्ट्री में डेटा एनालिटिक्स सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली तकनीकों में से एक है। 




इस क्षेत्र में छात्रों के लिए बेहतरीन अवसर उपलब्ध हैं। बिजनेस इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकें भी कई मायनों में डेटा एनालिटिक्स से जुड़ी हुई हैं। इस तकनीक को सीखने के लिए एसक्यूएल, हडूप, टेराडेटा, पावर बीआई, स्पार्क और पाइथन का अध्ययन करना जरूरी है।इस आर्टिकल के प्रकाशन पर आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर के प्रो चांसलर डॉ. दौलत सिंह ने ईं. सौरभ को बधाई दी है। वहीं इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) के एनवायरनमेंट ऑफिसर कुमार दीपक ने कहा कि इस प्रकार के वैश्विक डेटा टूल्स अनुसंधान में काफी मददगार साबित होते हैं। इस प्रकार के बड़े डेटा संचयन से कोरोना के संक्रमण का एक विवरण मिलेगा जहाँ पर एक संक्रमित व्यक्ति के विचरण के इतिहास से लेकर अन्य दूसरे व्यक्ति के अन्दर होने वाले प्राथमिक संक्रमण के लक्षण को एक व्यापक तरीके से आकलन किया जा सकता है जिससे भविष्य में इस प्रकार के वैश्विक सर्वव्यापी आपदा जोखिम को समझने और उससे लड़ने में एक मदद मिल सकती है। सौरभ के पिता डॉ. स्वयंभू शलभ ने कहा कि यह गौरव की बात है कि नई युवा पीढ़ी उस अत्याधुनिक तकनीक पर काम कर रही है जो कोरोना जैसी विश्वव्यापी चुनौती से मुकाबला करने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है।
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